!!!---: शास्त्रों को पढ़ने का उपयोग :---!!!
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"पठन्ति चतुरो वेदान् धर्मशास्त्राण्यनेकशः ।
आत्मनं नैव जानन्ति दर्वी पाकरसं यथा ।।"
भावार्थ :---जो ऋग्वेदादि चारों वेद और अनेक शास्त्रों का गहन अध्ययन करके भी शास्त्रों के प्रतिपाद्य आत्मा और परमात्मा को नहीं जानते, आत्मज्ञान से शून्य हैं, उनका जीवन ठीक ऐसा ही है जैसे रसदार शाक में घूमनेवाली कलछी को उसके स्वाद का ज्ञान नहीं होता।
विमर्श :----सारे वेदमन्त्रों और सभी धर्मशास्त्रों का तात्पर्य परमात्मा में है। वेदादि शास्त्र आत्मा-परमात्मा के ज्ञान से भरे पड़े हैं। सभी शास्त्र पुकार-पुकार कर उस ब्रह्म को जानने का सन्देश दे रहे हैं। वेद ने तो यहाँ तक कह दिया―
"यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ।" (ऋग्वेद १।१६४।३९)
जो सर्वोत्पादक परमेश्वर को नहीं जानता, उसे वेदपाठ से भी क्या लाभ होगा ?