!!!---: गुणों से सुन्दरता :---!!!
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"गुणो भूषयते रुपं शीलं भूषयते कुलम् ।
सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम् ।।"
( चाणक्य नीति ८/१५)
भावार्थ :----गुणों से रुप सुन्दर लगता है, शील कुल को चार चाँद लगा देता है, सिद्धि से विद्या सुशोभित होती है और भोग धन को अलंकृत कर देता है।
विमर्श :―गुण मनुष्य के रुप को शोभायमान बना देते हैं :---
"पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते ।" (रघुवंश ३।६२)
गुण सर्वत्र अपना प्रभाव जमा देते हैं।
"गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा ।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः ।।'
(मृच्छक० ४।२२)
मनुष्य को सदा दया, दाक्षिण्य आदि गुणों की प्राप्ति में प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि गुणी दरिद्र भी गुणहीन धनिकों से श्रेष्ठ होता है। वैदिक संस्कृत
शील कुल को अलंकृत करता है। शील का अर्थ है :― चरित्र, उत्तम स्वभाव और आचरण, नैतिकता, सज्जीवन, शुचिता, ईमानदारी, वैरत्याग, दान, दया आदि।
"शीलं परं भूषणम् ।" (भर्तृहरि नीतिशतकम् ७८)
शील सबसे बड़ा आभूषण है।
जो मनुष्य शीलरूपी आभूषण से अलंकृत है, उसके घर को भी चार चाँद लग जाएँगे। शिशु-संस्कृतम्
सिद्धि से विद्या सुशोभित होती है, सिद्धि का अर्थ है :--- सफलता, मुक्ति। विद्या वही उत्तम है जो आवागमन के चक्र से छुड़ाकर मुक्ति की प्राप्ति कराये। कहा भी है :---
'सा विद्या या विमुक्तये' ।"
विद्या वही है जो मुक्ति प्राप्त करानेवाली हो।
सिद्धि का अर्थ बुद्धि भी होता है। बुद्धि से विद्या सुशोभित होती है। यदि मनुष्य के पास बुद्धि नहीं है तो 'साक्षरा विपरीतत्वे भवन्ति राक्षसा ध्रुवम्'
'साक्षराः' विपरीत बुद्धि होने पर 'राक्षसाः' बन जाते हैं, अतः विद्या की सफलता बुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति में है।
अलौकिक शक्तियाँ, योग-सिद्धियाँ भी विद्या को सुभूषित करती हैं। लौकिक संस्कृत
धन की शोभा दान और भोग में है, सञ्चय करने में नहीं।
भामाशाह ने अपने जीवन की सारी कमाई महाराणा प्रताप के चरणों में अर्पित कर दी। ऐसा करके भामाशाह ने अपने देश की सेवा तो की ही, वह स्वयं अजर और अमर बन गया।
योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री