शनिवार, 8 जुलाई 2017

मनुष्य का व्यर्थ जीवन

 मनुष्य का व्यर्थ जीवन
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"धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोSपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्यैव तस्य जन्म निरर्थकम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१३.०९)
अर्थ :---जिस मनुष्य के जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष---इन चार पुरुषार्थों में से एक भी नहीं है, उसका जन्म ऐसे ही व्यर्थ और निष्फल है, जैसे बकरी के गले में लटकने वाले स्तन, जिनसे न तो दूध निकलता है और न गले की शोभा ही होती है ।

विश्लेषण
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धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष---ये चार पुरुषार्थ हैं । मनुष्य को धर्मपूर्वक अर्थ (धन) का उपार्जन करते हुए उस शुद्ध, पवित्र धन से काम का उपभोग (इष्ट कामनाओं का भोग, गृहस्थ धर्म का पालन) करते हुए अन्त में जीवन के चरम और परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना चाहिए । मनुष्य चारों पदार्थों को पाने का प्रयत्न करें । यदि चारों को प्राप्त न कर सके तो तीन, दो अथवा एक को तो अवश्य ही प्राप्त करना चाहिए ।

धार्मिक बनो, धर्म का आचरण करो । बालक हकीकत राय की तरह धर्म के लिए अपना तन, मन, धन सब कुछ न्योछावर कर दो ।

धार्मिक न बन सको तो अर्थ का उपार्जन करो । धनकुबेर बनो । आवश्यकता पडने पर भामाशाह की भाँति अपना सम्पूर्ण धन देश, धर्म, जाति, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए लुटा दो ।

अथवा इतना पुरुषार्थ करो कि इपनी इष्ट कामनाओं को भोग सको । आदर्श गृहस्थी बनो । दशरथ और कौशल्या के पुत्र राम की तरह देश, धर्म, समाज, संस्कृति को सन्तान दे सको । समाज को अपने प्रतिनिधि के रूप में सुयोग्य नागरिक (उत्तम सन्तान) प्रदान करो ।

यदि इन तीनों में से किसी भी पुरुषार्थ को प्राप्त नहीं कर सके तो मोक्ष-प्राप्ति के लिए प्रबल पुरुषार्थ करो । इसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, ऐसा उद्योग करो ।

जिस मनुष्य के जीवन में इन चारों में से एक गुण भी नहीं है, उसका जन्म निरर्थक और निष्फल है । बकरी के गले में माँस पतला, लम्बा टुकडा लटकता रहता है । यह किसी काम का नहीं है । दूध देने वाले स्तन की तरह लगता है, किन्तु दूध नहीं देता । यह माला की तरह लगता तो है, किन्तु माला की तरह यह शोभा नहीं देता ।
इसलिए अपने जीवन को व्यर्थ मत गँवाओ, जीवन अनमोल है, यह मानव जीवन बार-बार नहीं मिलता । समय रहते इस मानव जीवन का उपयोग कर लो, अन्यथा ऐसा फिर कभी नहीं मिलेगा ।
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