रविवार, 27 मार्च 2016

इन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता है

!!!---: इन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता है :---!!!
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"न पश्यति च जन्मान्धः कामान्धो नैव पश्यति ।
न पश्यति मदोन्मत्तो ह्यर्थी दोषान् न पश्यति ।।"
(चाणक्य-नीति---6.7)

अर्थः---जन्म के अन्धे को दिखाई नहीं देता, कामान्ध को भी कुछ नहीं दीखता, शराब आदि के कारण उन्मत्त को भी कुछ नहीं सूझता और स्वार्थी अपने काम को सिद्ध करने की धुन में किसी काम में दोष नहीं देखता ।

विमर्श :----कामी पुरुष को कुछ भी दिखाई नहीं देता है, किसी कवि ने ठीक ही कहा हैः---

"दिवा पश्यति नोलूकः काको नक्तं न पश्यति ।
अपूर्वः कोपि कामान्धो दिवा नक्तं व पश्यति ।।"

अर्थः---उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता, कौए को रात में नहीं दीखता, परन्तु कामान्ध विचित्र प्राणी है, इसे न रात में दिखाई देता है और न दिन में ।

महान् कवि भर्तृहरि ने कामी के लिए क्या खूब कहा हैः---

"कृशः काणः खण्जः श्रवणरहितः पुच्छविकलो
व्रणी पूयक्लिन्नः कृमिकुलशतैरावृततनूः ।
क्षुधाक्षामी जीर्णः पिठरककपालार्पितगलः
शुनीमन्वेति श्वा हतमपि निहन्त्येव मदनः ।।"



अर्थः----भोजन न मिलने के कारण दुर्बल, काना, लंगडा, कटे कान वाला, बिना पूँछ वाला घायल अत एव पीब से भरा हुआ और सहस्रों कुृमियों से व्याप्त शरीर वाला, भूख का मारा हुआ, बुढापे के कारण शिथिल, मिट्टी के घडे का मुँह जिसके गले में फँसा हुआ है----ऐसा कुत्ता भी मैथुन के लिए कुतिया के पीछे-पीछे दौडता है । अहो कामदेव सब प्रकार से नष्ट उस कुत्ते को और भी मार रहा है ।
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सोमवार, 21 मार्च 2016

युवा रहना है तो .....

!!!---: युवा रहना है तो :---!!!
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"अध्वा जरा मनुष्याणां वाजिनां बन्धनं जरा ।
अमैथुनं जरा स्त्रीणां वस्त्राणाम् आतपो जरा ।।"
(चाणक्य-नीतिः---4.17)

अर्थः----ये सभी कारण बुढापा जल्दी लाते हैंः---

(1.) मनुष्यों के लिए पैदल चलना,
(2.) घोडों को बाँध कर रखना,
(3.) स्त्रियों के लिए असम्भोग (मैथुन न करना),
(4.) वस्त्रों को धूप में अधिक देर तक सुखाना ।



यदि सदैव युवा बने रहना चाहते हैं तो उपर्युक्त कार्य न करें ।
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शब्दार्थ :---- मनुष्याणाम्---मनुष्यों के लिए, अध्वा---अत्यधिक पैदल चलना, जरा---बुढापा, वाजिनाम्---घोडों के लिए, बन्धनम्---बन्धन, घोडों को बाँधकर रखना, स्त्रीणाम्---स्त्रियों के लिए, अमैथुनम्--असम्भोग, मैथुन करना, वस्त्राणाम्---वस्त्रों के लिए,
आतपः---धूप,
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विमर्श 
:----मर्यादा के भीतर पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है , परन्तु अधिक मात्रा में और अधिक समय तक पैदल चलने से शरीर में थकावट और वृद्धावस्था के चिह्न उत्पन्न होते हैं । घोडों के लिए बन्धन बुूढापा उत्पन्न करने वाला है । "घोडा अडा क्यों ? पान सडा क्यों ? रोटी जली क्यों ? ----> फेरा न था ।"
वस्त्रों के लिए धूप जरा के समान है । वस्त्रों को निरन्तर धूप में सुखाने से वे शीघ्र जीर्ण होने लगते हैं और रंगीन हो तो उनका रंग उड जाता है । किसी अन्य विचारक ने वृद्धावस्था के पाँच कारण गिनाए हैंः--- "शीतमध्वा कदन्नं च वयो अतीताश्च योषितः । मनसः प्रातिकूल्यं च जरायाः पञ्च हेतवः ।।" अर्थः---वृद्धावस्था के पाँच कारण हैंः---- (1.) अधिक ठण्ढ का लगना, (2.) बहुत पैदल चलना, (3.) बुरे अन्न का सेवन करना, (4.) वृद्धा स्त्री के साथ सम्भोग करना, (5.) मन को नकारात्मक रखना । मन के अनुकूल व सकारात्म रहने से मन में प्रसन्नता रहती है जिससे आयु की वृद्धि होती है, दूसरी तरफ मन में नकारात्मकता और प्रतिकूलता रहने से मन चिडचिडा हो जाता है, मन सदा पस्त रहता है, जिससे आयु घटने लगती है , बुढापा आ धमकता है ।

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रविवार, 20 मार्च 2016

अभिनन्दन के योग्य पुरुष

!!!---: अभिनन्दन के योग्य पुरुष :---!!!
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"वाञ्छा सज्जनसङ्गमे परगुणे ""प्रीतिर्गुरौ नम्रता ,
विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रतिर्लोकापवादाद् भयम् ।

भक्तिः शूलिनि शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्तिः खले ,
येष्वेते निवसन्ति निर्मलगुणास्तेभ्यो नरेभ्यो नमः ।।"
(नीतिशतकम्--62)

अर्थः---उस व्यक्ति का अभिनन्दन (सम्मान) किया जाना चाहिए, जिसमें ये 9 गुण हो---
(1.) सत्संग की अभिलाषा,
(2.) दूसरों के गुणों में प्रेम,
(3.) गुरुजनों के प्रति विनम्रता,
(4.) विद्या में अभिरुचि,
(5.) अपनी धर्मपत्नी में ही अनुरक्ति, अन्य में नहीं,
(6.) लोक में बुरे कामों से डर,
(7.) भगवान् शंकर की भक्ति,
(8.) मन को वश में करने की क्षमता,
(9.) दुर्जनों (दुष्टों) से दूर रहना ।

ये 9 पवित्र गुण जिसके अन्दर हैं, उनका सम्मान किया जाना चाहिए । उन्हें नमस्कार करना चाहिए ।

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शब्दार्थ :----सज्जनसंगमे---सज्जनों की संगति में, वाञ्छा---इच्छा, परगुणे---दूसरों के गुणों में, प्रीतिः---प्रेम,
गुरौ---पूज्य जनों में,
स्वयोषिति---अपनी स्त्री में, रतिः---आसक्त, शूलिनि-भक्ति---शिवजी की आराधना में, आत्मदमने शक्तिः---मन को वश में करने की शक्ति, खले---दुष्ट के संग में, संसर्गमुक्तिः--सम्पर्क में न रहना. इस श्लोक में शार्दूलविक्रीडित छन्द है ।

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