!!!---: दुर्जन सज्जन कभी नहीं बन सकता :---!!!
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"न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः ।
आमूलसिक्तः पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति ।।"
(चाणक्य-नीतिः---11.06)
अर्थः---यह ध्रुव सत्य है कि अनेक प्रकार से समझाने और सिखाने पर भी दुष्ट मनुष्य सज्जन नहीं बन सकता, जैसे जड सहित दूध और घी से सींचे जाने पर भी नीम का वृक्षा मीठा नहीं होता ।
विमर्शः-----
किसी के स्वभाव को बदलना सम्भव नहींः---
"मधुना सिञ्चयेन्निम्बं निम्बः किं मधुरायते ।
जातिस्वभावदोषोSयं कटुकत्वं न मुञ्चति ।।"
अर्थः---नीम की जड को मधु से सींचने पर भी क्या नीम मीठा हो सकता है ? कदापि नहीं । कडवापन उसका जाति स्वभाव दोष है, अतः वह उसे नहीं छोड सकता ।
"यश्च निम्बं परशुना यश्चैनं मधुसर्पिषा ।
यश्चैनं गन्धमाल्याद्यैः सर्वस्य कटुरेव सः ।।"
अरुणदत्तः
अर्थः---जो कुल्हाडे से नीम को काटता है, जो मधु और घृत से उसे सींचता है और जो गन्धमाला आदि से उसकी पूजा करता है---उन सबके लिए वह कडवा ही होता है ।
"आम्रं छित्वा कुठारेण निम्बं परिचरेत्तु कः ।
यश्चैनं पयसा सिञ्चेन्नैवास्य मधुरो भवेत् ।।"
(वा.रा.अयो.का. 35.16)
अर्थः---कौन बुद्धिमान् आम को कुल्हाडे से काटकर उसके स्थान पर नीम की सेवा करेगा ? जो आम के स्थान पर नीम को दूध से सींचता है, उनके लिए भी वह नीम मीठा फल देने वाला नहीं हो सकता ।
'द्विधा भज्येयमप्येवं न नमेयं तु कस्यचित् ।
एष मे सहजो दोषः स्वभावो दुरतिक्रमः ।।"
(वा.रा.युद्ध.का. 36.11)
अर्थः---रावण माल्यवान् से कहता है---"मैं बीच में से दो टुकडे हो जाऊँगा, परन्तु किसी सामने झुकूँगा नहीं, यह मेरा स्वाभाविक दोष है और स्वभाव अपरिवर्तनशील होता है ।"
"स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ।।"
(पञ्चतन्त्र---1.280)
अर्थः---उपदेश से कोई किसी के स्वभाव को नहीं बदल सकता । भलीभाँति खौलाया हुआ भी पानी पुनः शीतल हो जाता है ।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि भारतवर्ष में म्लेच्छ लगभग 1000 वर्षों से राज्य कर रहे थे, वे सभी दुष्ट स्वभाव के थे , इसीलिए उन्होंने भारत को गुलाम बनाया, वे कभी सुधर नहीं सकते । इनपर कभी विश्वास न करें ।
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