रविवार, 7 अगस्त 2016

काली कमाई का फल

!!!---: काली कमाई का फल :---!!!
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"आत्मापराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।
दारिद्र्यरोगदुःखानि बन्धनव्यसनानि च ।।"
(चाणक्य-नीतिः---14.2)

अर्थः---दरिद्रता (गरीबी), रोग, दुःख, बन्धन और आपत्तियाँ (संकट) ये सब मनुष्यों के अपने ही अधर्मरूपी वृक्ष के फल हैं ।

विमर्शः---पूर्वजन्म में किए हुए पापों का फल वर्त्तमान जन्म में रोग, दुःख आदि के रूप में मिलता हैः---

"व्याधिर्वित्तनाशः प्रियविरहो दुर्भगत्वमुद्वेगः ।
सर्वत्राशाभङ्गः स्फुटं भवति ह्यकृतपुण्यस्य ।।"
(शार्ङ्गधरपद्धतिः)

अर्थः----रोग, धन का नाश, प्रिय व्यक्ति का वियोग, कुरुपता, चित्त का उद्वेग और सब कार्यों में निराशा (सर्वत्र असफलता) ये सब उसके यहाँ प्रकट होते हैं, जिसने पूर्वजन्म में पुण्य नहीं किया है ।

"कर्मजा हि शरीरेषु रोगाः शरीरमानसाः ।
शरा इव पतन्तीह विमुखा दृढधन्विभिः ।।"
(सुभाषितावलिः)

अर्थः---अपने पूर्व जन्म के पाप कर्मों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले शारीरिक और मानसिक रोग मनुष्य के शरीर पर ठीक वैसे ही आक्रमण किया करते हैं, जैसे सिद्धहस्त धनुर्धारी द्वारा छोडे गए बाण ठीक लक्ष्य पर जाकर गिरते हैं ।

"यद्व्यङ्गाः कुष्ठिनश्चान्धाः पङ्गवश्च दरिद्रिणः ।
पूर्वोपार्जितपापस्य फलमश्नन्ति देहिनः ।।"
(भोजप्रबन्धः--199)

अर्थः----अङ्गहीन, कोढी, अन्धे, लंगडे और दरिद्री लोग वास्तव में अपने पूर्वजन्मार्जित पापों का फल ही भोग रहे होते हैं ।

"पूर्वजन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते ।
तच्छान्तिरौषधैर्दानैर्जपहोमार्चनादिभिः ।।"
(स्मृतिरत्नाकर)

अर्थः----पूर्वजन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में व्याधि के रूप में पीडा देता है । उसकी शान्ति औषधियों तथा दान, तप, जप, होम, पूजापाठ आदि द्वारा हुआ करती है ।

"पूर्वजन्म के पाप-पुण्यों के बिना उत्तम, मध्यम और नीच शरीर तथा बुद्धि आदि पदार्थ कभी नहीं मिल सकते ।"
(महर्षि दयानन्द सरस्वती--ऋग्वेदादि.)
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