शनिवार, 2 जुलाई 2016

ब्राह्मण रूपी नौका

!!!---: ब्राह्मण रूपी नौका :---!!!
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"धन्या द्विजमयी नौका विपरीता भवार्णवे ।
तरन्त्यधोगताः सर्वे उपरिस्थाः पतन्त्यधः ।।"
(चाणक्य-नीतिः--15.13)

अर्थः----ब्राह्मण रूपी नौका धन्य है । संसार रूपी सागर में यह उल्टी गति से चलती है । उल्टी गति क्या है , जो इस नाव के नीचे रहते हैं, वे सब तो तर जाते हैं, भवसागर से पार उतर जाते हैं और जो इस नाव में ऊपर चढते हैं, उनका पतन हो जाता है, वे नीचे गिर जाते हैं । तात्पर्य यह है कि जो ब्राह्मणों के साथ नम्रता का व्यवहार करते हैं, वे तर जाते हैं और जो नम्र नहीं रहते, अभिमान में चूर रह कर उनका अपमान करते हैं, उनका पतन हो जाता है ।

विमर्शः----धर्मात्मा और नीतिज्ञ महात्मा विदुर ने धृतराष्ट्र को विनाश की सूचना देने वाले आठ लक्षणों का निर्देश किया था----

विनाश को प्राप्त होने वाले पुरुष में निम्न आठ चिह्न पहले ही आ जाते हैंः---

(1.) वह ब्राह्मणों से द्वेष करने लगता है,
(2.) ब्राह्मणों से विरोध करता है,
(3.) ब्राह्मणों के धन को छीनता है,
(4.) ब्राह्मणों को मारने (शारीरिक दण्ड या नष्ट करने) की करता है,
(5.) ब्राह्मणों की निन्दा करने में सुख मानता है,
(6.) ब्राह्मणों की प्रशंसा से प्रसन्न नहीं होता,
(7.) उचित अवसरों (उत्सवादि) पर ब्राह्मणों का स्मरण नहीं करता (उनसे सम्मति नहीं लेता और उन्हें निमन्त्रित करता है)
(8.) ब्राह्मण यदि कुछ माँगते हैं तो उन्हें हीनता से देखता है ।

बुद्धिमान् मनुष्य को इन दोषों को जानना चाहिए और जानकर इन्हें त्याग देना चाहिए, अन्यथा विनाश निश्चित है ।


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