!!!---: चाणक्य की सादगी :---!!!
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मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के प्रधानमन्त्री आचार्य चाणक्य की कुटिया पर एक दिन एक महात्मा पधारे । भोजन की बेला थी । आचार्य ने अतिथि से अनुरोध किया कि वह उनके साथ भोजन करे । महात्मा ने उनके अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
कुटिया के एक कक्ष में पाकशाला (रसोई) थी । वहाँ दो महिलाएँ भोजन बनाने में संलग्न थीं । उन्होंने शीघ्रता से भोजन परोसा । भोजन बहुत ही सादा था ---थोडे-से चावल, कढी और एक सब्जी । साधु को बहुत आश्चर्य हुआ । वह बोल उठे---"आप इस बडे साम्राज्य के निर्माता और शक्तिशाली प्रधानमन्त्री हैं , फिर यह सादा जीवन क्यों बिताते हैं ?"
आचार्य चाणक्य ने कहा---"जनता की सेवा के लिए मैं प्रधानमन्त्री बना हूँ । इसका अर्थ यह नहीं कि राज्य की सम्पत्ति का मैं उपयोग करूँ ।यह कुटिया भी मैंने अपने हाथों से बनाई है ।"
महात्मा पूछ उठे----"आप अपनी आजीविका के लिए भी कुछ करते हैं ?"
!! चाणक्य ने उत्तर दिया----"हाँ, मैं भाष्य और पुस्तकें लिखता हूँ । मैं प्रतिदिन राज्य के लिए आठ घण्टे और अपने और परिवार के लिए चार घण्टे काम करता हूँ । मेरी कोशिश है कि राज्य में कोई दुःखी न हो ।"
महात्मा ने कहा---"यहाँ तो कोई दुःखी नहीं, पर पास के गाँव में गाँव वाले एक चोर से बडे दुःखी हैं । चोर उनके कम्बल चुरा ले जाता है ।"
आचार्य चाणक्य ने उन दुःखी गाँव वालों के लिए राजभण्डार से कम्बल मँगवाए । अगले दिन कम्बल बँटने थे, इसलिए वे कम्बल रात में उनकी कुटिया में ही रख दिए गए ।
चोर ने उस रात्रि को आचार्य चाणक्य की कुटिया में ही चोरी की योजना बनाई । वह दबे पाँव आचार्य की कुटिया में घुस आया । उसने देखा कि प्रधानमन्त्री आचार्य चाणक्य स्वयं एक पुराना सिला कम्बल ओढे सो रहे हैं । उनके बगल में नए कम्बलों का ढेर लगा हुआ था ।
चोर प्रधानमन्त्री चाणक्य की स्वार्थ-हीनता देखकर पछतावे से भर गया और अपने कार्य पर दुःखी हुआ ।
अगले दिन जब गाँव वाले जागे तब उनके कम्बल दरवाजों के बाहर पडे थे । इतिहास गवाह है कि मौर्य साम्राज्य में इस घटना के बाद कोई चोर नहीं रह गया ।
श्रीमान् राजीव दीक्षित जी के अनुसार 1835 तक भारत में कोई चोर नहीं था । मुसलमान और अंग्रेजों के कारण इस देश में चोर और बलात्कारी हो गए ।
आज इस प्रकार की घटना होती तो उस महात्मा को सिद्ध करना पडता कि चोरी हुई या नहीं । यदि चोरी हुई तो किसने की । यदि चोर पकडा जाता तो वह बच भी सकता है, पैसे के बल पर और यदि सजा हो भी जाती तो वह चोर चोरी करना छोड देता ऐसा कहना असम्भव है । यहाँ तो सभी चोर हैं ।
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