"नाहारं चिन्तयेत् प्राज्ञो धर्ममेकं हि चिन्तयेत् ।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१२.१८)
अर्थः---बुद्धिमान् मनुष्य को अपने आहार , भोजन के सम्बन्ध में सोच-विचार नहीं करना चाहिए, उसे तो केवल धर्म का ही चिन्तन करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य का आहार तो उसके जन्म के साथ ही उत्पन्न हो जाता है ।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१२.१८)
अर्थः---बुद्धिमान् मनुष्य को अपने आहार , भोजन के सम्बन्ध में सोच-विचार नहीं करना चाहिए, उसे तो केवल धर्म का ही चिन्तन करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य का आहार तो उसके जन्म के साथ ही उत्पन्न हो जाता है ।