!!!---: समझदार व्यक्ति :---!!!
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"कर्मायत्तं फलं पुंसां बुद्धिः कर्मानुसारिणी ।
तथापि सुधयश्चाSSर्याः सुविचार्यैव कुर्वते ।।"
(चाणक्य-नीतिः---१३.१७)
अर्थः--- मनुष्यों को फल कर्मों के अनुसार ही मिलता है और बुद्धि भी कर्मों के अनुसार ही चलती है, फिर भी विद्वान् और सज्जन लोग भली-भाँति सोच-विचारकर ही किसी कार्य को करते हैं ।
भारवि ने किरातार्जुनीयम् (२.३०) में कहा भी है--
"सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ।।"
अर्थः---विना सोचे-विचारे, एकाएक किसी कार्य को आरम्भ नहीं करना चाहिए । अविवेक (सम्यक् विचार न करना) विपत्तियों का कारण है । गुणों पर अपने आपको समर्पण करने वाली सम्पत्तियाँ विचारशील पुरुष का स्वयं वरण करती है ।
इस तथ्य को समझते हुए सुधीजन (विद्वान्) एवं आर्यपुरुष सोच-विचारकर ही किसी कार्य को करते हैं ।
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