रविवार, 4 जून 2017

विचार कर कार्य न करने वाला नष्ट हो जाता है ।

"अनालोक्य व्ययं कर्त्ता ह्यनाथः कलहप्रियः ।
आतुरः सर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्रं विनश्यति ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१२.१७)

अर्थः--बिना सोचे-समझे अनाप-शनाप व्यय करने वाला, सहायक न होने पर भी लडाई-झगडा करने वाला और सब वर्णों की श्त्रियों से सम्भोग करने के लिए उतावला मनुष्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है ।
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