रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमुत्तमम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः--०७.११)
अर्थः---भुजबल राजा का बल होता है, ब्रह्मज्ञान और वेद का पाण्डित्य ब्राह्मण का बल होता है, सौन्दर्य , यौवन और मधुरभाषण स्त्रियों का बल होता है ।
श्रीकृष्ण ने महाभारत में जरासन्ध से सही कहा था कि भगवान् ने क्षत्रियों का बल उनकी भुजाओं में भर दिया है---
"क्षत्रियो बाहुवीर्यस्तु ।"
(म.भा.सभा-२१.५१)
क्षत्रियो का बल और पराक्रम उनकी भुजाओं में होता है ।
ब्राह्मण का बल उनकी वाणी में होता है । वह वेद का स्वाध्याय कर दूसरों को भी अमृत पिलाता है ।
नारी का बल उसके रूप, यौवन और मधुरभाषण में होता है ।
आचार्य चाणक्य ने अन्यत्र कहा है---
"यस्य भार्या सुरूपा च भर्तारमनुगामिनी ।
नित्यं मधुरवक्त्री च सा श्रियो न श्रियः श्रियः ।।"
धन को धन नहीं कहते, अपितु जिसकी पत्नी रूपवती, पति के अनुूकूल चलने वाली और सदा मीठा बोलने वाली है, वस्तुतः वही श्री (गृहलक्ष्मी) है ।
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