मनुष्य का व्यर्थ जीवन
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"धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोSपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्यैव तस्य जन्म निरर्थकम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१३.०९)
अर्थ :---जिस मनुष्य के जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष---इन चार पुरुषार्थों में से एक भी नहीं है, उसका जन्म ऐसे ही व्यर्थ और निष्फल है, जैसे बकरी के गले में लटकने वाले स्तन, जिनसे न तो दूध निकलता है और न गले की शोभा ही होती है ।
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"धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोSपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्यैव तस्य जन्म निरर्थकम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१३.०९)
अर्थ :---जिस मनुष्य के जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष---इन चार पुरुषार्थों में से एक भी नहीं है, उसका जन्म ऐसे ही व्यर्थ और निष्फल है, जैसे बकरी के गले में लटकने वाले स्तन, जिनसे न तो दूध निकलता है और न गले की शोभा ही होती है ।